प्राकृतिक पुकार को सुनने के लिए स्वयं की सूक्ष्म संवेदनाओं को समझना होगा
माउंट आबूदांतीबाड़ा कृषि विश्व विद्यालय अनुसंधान निदेशक डॉ. सी.एम. मुरलीधरन ने कहा कि प्रकृति की पुकार को सुनने के लिए स्वयं की सूक्ष्म संवेदनाओं को समझना होगा। स्वयं की संवेदनहीन हो रही मानसिकता को राजयोग के माध्यम से सूक्ष्म बनाकर प्रकृति की पुकार को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। जिसके लिए ब्रह्माकुमारी संगठन के अथक प्रयासों से राजयोग की बारीकियों को वैज्ञानिक प्रयोगों की कसौटी पर खरा उतारने के लिए संवेदना की पृष्ठभूमि पर गहराई से अनुसंधान किए जा रहे हैं। दांतीबाड़ा कृषि विश्वविद्यालय व ब्रह्माकुमारी संगठन के सांझे अनुभवों के साथ यौगिक खेती में नित नए अनुसंधान किए जा रहे हैं। जिसके सार्थक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद शाश्वत यौगिक खेती को बढ़ाना देना चाहिए। प्रकृति मानवीय आवश्यकताओं को नियमानुसार पूरा करने में सक्षम है, बशर्ते प्राकृतिक नियमों के अनुरुप मानव उनका सदुपयोग करे। वे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के ज्ञान सरोवर अकादमी परिसर में कृषि एवं ग्राम विकास सेवा प्रभाग द्वारा सर्वांगीण विकास का आधार शाश्वत यौगिक खेती विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
ब्रह्माकुमारी संगठन की संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी डॉ. निर्मला दीदी ने कहा कि मन की विकृत्तियों का प्रभाव प्रकृति को भी विकृत कर देता है। श्रेष्ठ संकल्पों की रचना न केवल स्वयं की जीवनशैली सकारात्मक बनती है बल्कि प्रकृति को भी सुखदायी बनाया जा सकता है।लखनऊ कृषि निदेशालय सहायक निदेशक बदरी विशाल ने कहा कि अनाज की शक्ति भूमि की उर्वरा शक्ति को समृद्धशाली बनाने से बढ़ेगी। रसायनिक खादों का उपयोग करने से अनाज की पौष्टिकता पर भी ग्रहण लग गया है। आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से सशक्त बनाने की जिम्मेवारी का निर्वहन करने के लिए शाश्वत यौगिक खेती की ओर उन्मुख होना होगा। रसायनिक खेती का उपयोग करने से मानव की प्राकृतिक दूरियां बढ़ती जा रही हैं।
ब्रह्माकुमारी संगठन के अतिरिक्त सचिव बृजमोहन आनंद ने कहा कि खेती करने के साथ श्रेष्ठ कर्मों की खेती करना सर्वोत्तम कार्य माना जाता है। रसायनिक पदार्थों का उपयोग करने से अनाज की ताकत कम होने से मानव की मानसिकता भी संकुचित होती जा रही है।
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी ने कहा कि संघर्षमय परिस्थितियों में विकास की परिकल्पना अनुभव के अभाव में खंडित विचारों की भेंट चढ़ रही है। भारतीय चिंतन परंपरा में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना रही है। उसके मूल आधार पर प्रकृति के पांचों तत्वों का संतुलन रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है। मानव का अनावश्यक हस्तक्षेप प्रकृति के सर्वांगीण विकास में बाधक बनता जा रहा है। प्रकाश संशलेष्ण की प्रक्रिया में अवरोधक पैदा करना विकृति है।
कृषि व ग्राम विकास प्रभाग अध्यक्षा राजयोगिनी बीके सरला बहन ने कहा कि किसानों को देश की रीढ की हड्डी कहा जाता है। कृषि को लेकर किसानों में सकारात्मक वैचारिक क्रान्ति लाना अनिवार्य है। विचारों की संरचनाकृषि व ग्राम विकास प्रभाग उपाध्यक्ष बीके राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके तृप्ति बहन, मुख्यालय संयोजक बीके सुमंत भाई ने भी विचार व्यक्त किए।



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